बुधवार, अक्तूबर 26, 2011

DIYA दिया

अँधेरा चीरने को एक दिया काफी है.
हमारे चारो ओर के अँधेरे से हम क्यों बेपरवाह हैं ? या कि हम समझते हैं कि अँधेरा बहुत घना है; इसलिए पार नहीं पड़ेगी !
यही सोचकर; या फिर मैं क्या करूँ? कहकर हम अपना मुंह मोड़ लेते हैं. पर असल बात तो ये है कि 
अँधेरा कितना भी गहरा हो,
एक  नन्हे दिए की लौ से डरकर भाग जाता है !
. ठीक वेसे ही जैसे कि रात कितनी भी अंधकारी  क्यों न हो वह सूरज को निकलने से रोक नहीं सकती ! 
ज़ुल्म देखकर आँख बंद कर लेना , भी ज़ुल्म ही है ! इस जवाबदारी से बचा नहीं जा सकता ! साढ़े पाँच हज़ार साल बीतने पर भी हमने भीष्म पितामह व आचार्य द्रोण को द्रोपदी चीर हरण क़ी जवाबदेही से बरी नही किया है! 
ये तो पुलिस का काम है, या कि ये तो सरकार करेगी! ऐसा कह कर हम अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते ! अपने आस पास की  बुराइयों, और ज़ुल्मों को उजागर तो करना पड़ेगा; तब ही सरकार की जुम्मेवारी शुरू होगी ! उससे पहले तो कुछ नहीं हो सकता!
सुभाष चन्द्र बोस, सरदार भगत सिंह, महात्मा गाँधी, नेल्सन मंडेला, आंग सू ,और अन्ना हजारे  सब उदहारण हमारे सामने हैं!


यूँ तो अकेला ही चला था; जानिबे मंजिल ! 
  یوں تو، اکیلا ہی چلا تھا؛ جاںیبے منزل 
कारवां चलता गया काफिला बढता गया !!
کاروں چلتا گیا؛ قافلہ بڑھتا گیا !!؛ 

दीपावली के पवन पर्व पर सभी मित्रों सुह्रिदयों को शुभकामनायें 
माँ  लक्ष्मी भगवान विष्णु सहित विराजमान होकर सहाई हों 


जय हिंद جیہینڈ      ਜੈਹਿੰਦ

Ashok, Tehsildar Hanumamgarh 9414094991
www.apnykhunja.blogspot.com;

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