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बुधवार, अप्रैल 19, 2017

परोसा

 विवाह व अन्य ऐसे सामाजिक समारोह में जाकर; अक्सर मैं जोकर साबित होता हूँ। जहाँ तीन चार से अधिक प्रकार के पदार्थ परोसे गए हों। वस्तुतः 'परोसे गए' गलत क्रियापद है। वर्तमान समारोहों में, भोजन परोसा नहीं जाता! 
बल्कि उठाया जाता है। 
खैर! मेरी परेशानी इससे आगे शुरू होती है। सबसे पहले fruits खा लेने के बाद कोशिश करता हूँ; 
प्लेट व चम्मच फैंकने की बजाय, 
उसमें ही दही भल्ला ले लूँ । 
या दही की कटोरी में ही,
 पानी पी लूं । 
ऐसे में, Use & throw का status simbal;
 दौना, पत्तल, पालथी, पंगत की सनातन संस्कृति के आड़े आ जाता है ! 
मेरी यह हरकत दकियानूसी ही तो मानी जाएगी। इस ख़याल से असहज हो उठता हूँ। अव्यक्त भय समाया रहता है; - 
"कोई देख न ले।" 
इस मानसिकता के चलते, 
भरी महफ़िल में, 
विदूषक सा हो जाता हूँ!  
न चाहते हुए भी, manners की लाज रखने को, आठ दस disposal प्लेट, कटोरी, चम्मच, कांटा, गिलास तो टब में; 
फैंकने ही पड़ते हैं । 
अब यह कचरा किस पशु के पेट में जाएगा ? 
या फ़िर plastic का धुंआ किसका गला रेतेगा ??
मैं क्यों सोचूं ??? 
हाँ! 
कभी कभार मौका मिल जाए, 
तो पानी की छोटी बोतल को,
 अंतिम बूंद पी लेने तक; 
जेब में डाले रखता हूँ।  
और
 प्लेट के साथ paper napkin को भी जकड़े रखता हूँ।
जकड़े ही रखता हूँ!! 
अब तक हिसाब नहीं लगा पाया हूँ! खाना खाने के लिए! 
 कितने बर्तन चाहिएं??  
 कुल कितने ??    
My Location 29.609477; 74.269020 

शनिवार, अगस्त 13, 2016

भटनेर का सूरज

डूब गया भटनेर का साहित्यिक सूरज

हिंदी और राजस्थानी के प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री ओम पुरोहित "कागद" का कल सांय टिब्बी हनुमानगढ मार्ग पर सड़क दुर्घटना में देहान्त हो गया! टाऊन अस्पताल से श्री गंगानगर इलाज हेतु ले जाते समय लालगढ छावनी के पास रात्री 9:30 पर उन्होंने अन्तिम सांस ली! वे हनुमानगढ में शैक्षिक प्रकोष्ठ अधिकारी थे! 
कुछ वर्ष पूर्व ऐसी ही सड़क दुर्घटना में, उनका युवा पुत्र चल बसा था! ग़मगीन होकर भी कैसे मुसकुराते हैं, यह मैं कागद जी से सीख पाया:- 
तुम इतना क्यों मुसकुरा रहे हो! 
क्या  ग़़म है, जो छिपा रहे हो !! 
मानवीय मूल्यों और सामाजिक संसकारों को महत्व देने वाले, सौम्य मुसकान के धनी कागद जी, घग्घर नदी, कालीबंगा सभ्यता व भटनेर दुर्ग को लेकर हनुमानगढ का गौरव स्थापित करने के साथ साथ राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल करवाने को प्रयासरत् रहे हैं! मरुधरा साहित्य परिषद के माध्यम से उन्होंनेे अपने चारों ओर, पौध पल्लवित की! 
बादळां नै, 
फुरसत हुवै तो,
 अठै बरसै ! 
बठै लोग डूब रैया है, 
अठै लोग तरसै !! 
वट वृक्ष अपनी छाया में छोटे पौधों को पनपने नहीं देता! 'कागद' ने इस अवधारणा को बदल डाला! यह उनकी उदारता और असीम धैर्य ही है, कि मुझ जैसे गैर साहित्यिक को भी उन्होंने अपने समूह में स्थान दिया! 'कागद' के वट वृक्ष का रिक्त स्थान तो नहीं भर पाएगा! कागद के बिना तो, शब्द कैसे लिखे जाएंगे?  मरुधरा साहित्य परिषद् हनुमानगढ, सृजन सेवा संस्थान श्री गंगानगर और मायड़ भाषा सभी  . स्तब्ध .  .  . अवाक् हैं! . हे .  . राम . . . !!  .  .  . क्या .  .   हो .  .   .गया .  . ? 
मुळकता आवै कागद सा नै घणी घणी मनुआर !! 
हम छोड़ चले हैं, महफ़िल को !
याद आए कभी तो  मत रोना !! 


शुक्रवार, दिसंबर 21, 2012

संस्कृत-विद्यालय 23 GB

कल बीस दिसंबर ; 2012 वृहस्पतिवार को प्रातः तकरीबन 10.15 बजे निकटवर्ती गाँव 23 GB की थेहड़ में राजकीय उच्च प्राथमिक संस्कृत विद्यालय में पहुंचा। बच्चे आ रहे थे, अध्यापक गण भी कुछ ही समय में आ गए। गुरु जी ने मेरी आव-भगत करने का प्रयास किया। मैंने सरल तरीके से कह दिया - आपकी प्रार्थना में शामिल होने आया हूँ।
एक पंक्ति लड़कों की; और एक लड़कियों की। 
दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना। 
वन्दे मातरम; सुजलाम सुफलां मलयज शीतलाम शस्य श्यामलां 
त्वमेव माता च पिता त्वमेव; 
और प्रतिज्ञा - 
भारत मेरा देश है;
और फिर अंत में कबीर जी के दोहे- 
लाली मेरे लाल की जित देखों लाल लाली देखन मैं चली; मैं भी हो गई लाल। 
कबीरा इस संसार में जग हंसा ; ;हम रोये; ऐसी करनी कर चले, हम हँसे जग रोये। 

मन अति प्रसन्न हुआ; और मैं 25 NP  और PUBLIC INTERMEDIATE COLLEGE डोईवाला की यादों में चला गया।

शनिवार, अक्टूबर 13, 2012

उलंघन

पिछली रात रामलीला के उदघाटन हेतु गया; तो RCP के विद्यार्थियों ने गणेश-वंदना और शिव-अर्चना के दो नृत्य पेश किये। कला की दृष्टि से उनका प्रयास सराहनीय था; 
किन्तुदेश, काल और परिस्थिति की जब हम अवहेलना करते हैं; तो अच्छा भी बुरा ही लगता है। यदि कोई DISCO-DANCE COMPETITION होती तो निश्चय ही मैं उनकी प्रशंसा करता। श्रद्धा के बिना भक्ति स्वीकार्य नहीं हो सकती।  हम अपनी अगली पीढ़ी को राम, शिव और गणेश के बारे में क्या सन्देश देना चाहते हैं ? यह विचारणीय है
जब मैं अपने पिता के सामने हूँ, तो मैं पुत्र हूँ। विद्यालय में शिष्य हूँ। BUS या RAIL में यात्री हैं, जो CONDUCTOR के पर्यवेक्षण में रहना चाहिए। सब्जी खरीदने बाज़ार जाएँ, और रेहड़ी वाले से पूछें आलू क्या भाव है ? उसका जवाब - 20 रुपये किलो। तो हम ज्यादा से ज्यादा इतना ही कह सकते हैं- सेठ जी 15 लगाने हैं, तो 3 किलो दे दो। SCHOOL  में बच्चे का दाखिला करवाने जाते हैं , तो हम सिर्फ अभिभावक हैं। वहां का नियंत्रक संस्था प्रधान ही है। मंदिर में जाते हैं तो सिर्फ जीव हैं ; इससे ज्यादा कुछ नहीं।   
हम अपनी हैसियत को लांघें नहीं तो अच्छा है। 


धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो
प्राणियों में सद्भाव हो; विश्व का कल्याण हो 
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सोमवार, नवंबर 28, 2011

SHYAM MAHARSHI श्याम महर्षि

राजस्थानी भाषा अरु संस्कृति अकादमी रा नुंवा बणायोडा अध्यक्ष, श्री श्याम सुन्दर महर्षि सादा जीवन उच्च विचार री मिसाल है. 
उणा स्यूं  म्ह्यारै पैली मुलाकात सन १९८५ मायं अजमेर सैर  री चालती  सड़क रे किनारे हुयी ही# जद बै कानूनगो संघ रा परदेस अध्यक्ष हा, अर म्हे गंगानगर रा जिला मंत्री*  बां ही मनै राज्य स्तर पर जाण-पिछाण दिराई, अर संघर्ष करण री प्रेरणा अर होंसलो बढावा करयो* अजमेर गे राजस्व मंडल अर जैपुर रे सचिवालय री जानकारियां अर तोर तरिका ई बां ही घणकरा सिखाया, अर सदा ही बड़े भाई सारु  सिखावण दीन्ही*  बै श्रीडूंगरगढ़ रैन्वता अर म्हे श्रीगंगानगर* बाद में १९९८-९९ में जद मैं चुरू जिले रो सदर कानूनगो हो, तो बै तसीलदार उदेपुरवाटी हा* अप्रेल २०१० में हूँ नागौर स्यूं श्रीडूंगरगढ़ जा'र मिल्यो: तो बा ही पुराणी मुळकाई बांरे होंठा पर ही* 
बै मनिज्योड़ा राजस्थानी लेखक अर विचारक रह्योड़ा है, राजस्थानी भासा अर संस्कृति पर बांरी पूरी पैंठ है* बांनै ईं अकादमी रो अध्यक्ष बणाणों श्याम जीमहर्षि   रे साथे सगळा राजस्थानी साहित्याकारा अ'र राजस्थानी भासा रे सेवकां खातर गौरव री बात है*   

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