डूब गया भटनेर का साहित्यिक सूरज
हिंदी और राजस्थानी के प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री ओम पुरोहित "कागद" का कल सांय टिब्बी हनुमानगढ मार्ग पर सड़क दुर्घटना में देहान्त हो गया! टाऊन अस्पताल से श्री गंगानगर इलाज हेतु ले जाते समय लालगढ छावनी के पास रात्री 9:30 पर उन्होंने अन्तिम सांस ली! वे हनुमानगढ में शैक्षिक प्रकोष्ठ अधिकारी थे!
कुछ वर्ष पूर्व ऐसी ही सड़क दुर्घटना में, उनका युवा पुत्र चल बसा था! ग़मगीन होकर भी कैसे मुसकुराते हैं, यह मैं कागद जी से सीख पाया:-
तुम इतना क्यों मुसकुरा रहे हो!
क्या ग़़म है, जो छिपा रहे हो !!
मानवीय मूल्यों और सामाजिक संसकारों को महत्व देने वाले, सौम्य मुसकान के धनी कागद जी, घग्घर नदी, कालीबंगा सभ्यता व भटनेर दुर्ग को लेकर हनुमानगढ का गौरव स्थापित करने के साथ साथ राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल करवाने को प्रयासरत् रहे हैं! मरुधरा साहित्य परिषद के माध्यम से उन्होंनेे अपने चारों ओर, पौध पल्लवित की!
बादळां नै,
फुरसत हुवै तो,
अठै बरसै !
बठै लोग डूब रैया है,
अठै लोग तरसै !!
वट वृक्ष अपनी छाया में छोटे पौधों को पनपने नहीं देता! 'कागद' ने इस अवधारणा को बदल डाला! यह उनकी उदारता और असीम धैर्य ही है, कि मुझ जैसे गैर साहित्यिक को भी उन्होंने अपने समूह में स्थान दिया! 'कागद' के वट वृक्ष का रिक्त स्थान तो नहीं भर पाएगा! कागद के बिना तो, शब्द कैसे लिखे जाएंगे? मरुधरा साहित्य परिषद् हनुमानगढ, सृजन सेवा संस्थान श्री गंगानगर और मायड़ भाषा सभी . स्तब्ध . . . अवाक् हैं! . हे . . राम . . . !! . . . क्या . . हो . . .गया . . ?
मुळकता आवै कागद सा नै घणी घणी मनुआर !!
हम छोड़ चले हैं, महफ़िल को !
याद आए कभी तो मत रोना !!
हिंदी और राजस्थानी के प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री ओम पुरोहित "कागद" का कल सांय टिब्बी हनुमानगढ मार्ग पर सड़क दुर्घटना में देहान्त हो गया! टाऊन अस्पताल से श्री गंगानगर इलाज हेतु ले जाते समय लालगढ छावनी के पास रात्री 9:30 पर उन्होंने अन्तिम सांस ली! वे हनुमानगढ में शैक्षिक प्रकोष्ठ अधिकारी थे!
कुछ वर्ष पूर्व ऐसी ही सड़क दुर्घटना में, उनका युवा पुत्र चल बसा था! ग़मगीन होकर भी कैसे मुसकुराते हैं, यह मैं कागद जी से सीख पाया:-
तुम इतना क्यों मुसकुरा रहे हो!
क्या ग़़म है, जो छिपा रहे हो !!
मानवीय मूल्यों और सामाजिक संसकारों को महत्व देने वाले, सौम्य मुसकान के धनी कागद जी, घग्घर नदी, कालीबंगा सभ्यता व भटनेर दुर्ग को लेकर हनुमानगढ का गौरव स्थापित करने के साथ साथ राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल करवाने को प्रयासरत् रहे हैं! मरुधरा साहित्य परिषद के माध्यम से उन्होंनेे अपने चारों ओर, पौध पल्लवित की!
बादळां नै,
फुरसत हुवै तो,
अठै बरसै !
बठै लोग डूब रैया है,
अठै लोग तरसै !!
वट वृक्ष अपनी छाया में छोटे पौधों को पनपने नहीं देता! 'कागद' ने इस अवधारणा को बदल डाला! यह उनकी उदारता और असीम धैर्य ही है, कि मुझ जैसे गैर साहित्यिक को भी उन्होंने अपने समूह में स्थान दिया! 'कागद' के वट वृक्ष का रिक्त स्थान तो नहीं भर पाएगा! कागद के बिना तो, शब्द कैसे लिखे जाएंगे? मरुधरा साहित्य परिषद् हनुमानगढ, सृजन सेवा संस्थान श्री गंगानगर और मायड़ भाषा सभी . स्तब्ध . . . अवाक् हैं! . हे . . राम . . . !! . . . क्या . . हो . . .गया . . ?
मुळकता आवै कागद सा नै घणी घणी मनुआर !!
हम छोड़ चले हैं, महफ़िल को !
याद आए कभी तो मत रोना !!
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