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शनिवार, मार्च 23, 2013

न्याय

पिछले दो दिन में दो बड़ी ख़बरें सरकार और राजनीतिक वक्तव्यों में जोर-शोर से आ रही हैं  :-
1 - इटली के दो नौ-सैनिकों का भारत लौटना !
२ - संजय दत्त की सज़ा को राज्यपाल द्वारा माफ़ी की संभाव्यता !!
मेरी नज़र में इन दोनों में दो स्पष्ट सी साम्यताएं  हैं;
कि दोनों ही मामलों में माननीय SUPREME COURT OF INDIA से आदेश हो चुके हैं;
दूसरा माननीय न्यायालय की न्यायिक प्रक्रिया और निष्कर्षो की अनदेखी करने का प्रयास किया जा रहा है; 
इस तरह के आचरण सीधे तौर पर न्यायिक पद्यति पर अविश्वास और व्यक्ति विशेष के महत्त्व को प्रतिपादित करना है; हमारे संविधान के अनुच्छेद 14  में विधि के समक्ष समानता और विधि के समान सरंक्षण का मौलिक अधिकार दिया गया है; फिर हम जानबूझ कर उसका उलंघन करने वाले प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं; 
ITALY के मामले में किसी व्यक्ति विशेष (MASIMILANO LATORO) ने माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष उन दो नौ-सैनिकों की व्यक्तिगत जमानत दी थी, की वे लौट आयेंगे, किन्तु उन दोनों को भारत से इटली भेजने के बाद वे अपनी बात से मुकर गए, भारत-सरकार ने कठोरता नहीं दिखाई तो, माननीय उच्चतम न्यायालय ने देश की प्रभु-सत्ता, संविधान, और न्याय व्यवस्था की रक्षा के कदम उठाते हुए, जमानती को भारत छोड़ने से रोक दिया;
इसके बाद भारत सरकार ने इटली सरकार को आश्वासन दिया कि भारतीय मछुआरों की हत्या करना, RAREST OF RARE प्रकार का मामला नहीं है; इसलिए ITALIAN MARINES को फांसी की सज़ा नहीं दी जावेगी; जबकि अदालती कार्यवाही अभी शुरू होनी है;
इसी प्रकार BOMBAY SERIAL BLAST 1993  में TADA COURT द्वारा 2007 में संजय दत्त की 6 साल सजा, माननीय उच्चतम न्यायालय ने घटा कर 5 साल कर दी है; JAIL में काटे जा चुके डेढ़ साल कम करके साढ़े तीन साल काटने बाकी हैं; अब राजनीतिक दबावों से राज्यपाल के माफीनामे की बात चल पड़ी है; 
यहाँ एक प्रश्न-चिह्न लगता है, ऊँची पहुच के बल पर अदालत और कानून को धत्ता बताने का प्रयास करके, फिर हम स्वतंत्र न्यायपालिका या आतंकवाद पर काबू पाने या फिर दुष्कर्मों से समाज को बचाने के स्तरहीन वाद-प्रतिवाद क्यों कर रहे हैं; कानून और मर्यादा का उलंघन ऊँची पहुँच वाला ही करता है; फिर ऐसे समाज के ठेकेदारों से हम अच्छे समाज, आचरण, मर्यादा, संस्कार , संस्कृति की उम्मीद क्यों लगाए बैठे है;


धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो
प्राणियों में सद्भाव हो; विश्व का कल्याण हो 
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सोमवार, नवंबर 21, 2011

SAMANATA समानता

तिलक तराजू और तलवार
इनको मारो जूते चार 
यह दोहा आप किसी भी मञ्च से बेधड़क बोल सकते हैं. आपको कोई डर भय महसूस करने की ज़रूरत ही नहीं है। यह काबिल सजा के दायरे में नहीं आता। ज़रूरत है, सजा के दायरे से बचने की। देश का  संविधान समानता का मौलिक अधिकार देता है।  यह अलग बात है कि वोटों कि चाह में हम संविधान का मूल स्वरूप बिगाड़ दें, या उसके रक्षक उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के आदेशों की मनमानी व्याख्या करते हैं। 
 ऐसी हरकतों से उनका नुकसान ज़्यादा होता है, जिनका हिमायती होने का हम ढोंग करते हैं । 
  हम समानता की बजाय खाई को चौड़ा और गहरा करते जा रहे है । 
नुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का 90% दुरूपयोग होता है। दूसरी तरफ़ वास्तविक दलित को आज भी हम बराबरी नहीं देना चाहते हैं। अन्तर सिर्फ इतना आया कि पहले सामन्तशाही शोषण था। अब उनके अपने ही वर्ग के स्वयंभू ठेकेदार सब कुछ हड़प जाते हैं। चाहे आरक्षण हो, अनुदान हो, नौकरियां हों संवैधानिक पद, या सामाजिक सुरक्षा सब हड़प। 
संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और आर्थिक समानता पर बल दिया गया है। भूमि सुधार कानून की आड़ में अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के लोगों को कम कीमत मिलती है। 
हम उनकी क्षमता और विकास को अवरुद्ध कर रहे हैं, क्यों ?
 ज़रा सोचें !!
जय हिंद جے ھند  ਜੈਹਿੰਦ
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मंगलवार, अक्टूबर 18, 2011

BESHARMI बेशर्मी

अख़बारों  ने राजस्थान के एक वरिष्ठ मंत्री की बर्खास्तगी की खबर मुखपृष्ट पर छापी है. कुछ माह पहले इसी प्रदेश के एक मंत्री को इस्तीफे के लिए मजबूर किया गया था . एक को सच बोलने की सजा के तौर पर बाहर चलता किया गया था, और दूसरा अदालत की तल्खी से बचने के लिए बरख्वास्त किया गया . उस पर सीनाजोरी ये कि लामबंदी करके कहा जा रहा है कि, मुख्यमंत्री ने गलत किया है . कल्याणकारी राज्य कि अवधारणा में राजा का चरित्र संदेह से परे होना चाहिए. राजा रामचंद्र जी ने सीता को केवल इसलिए वन में भेजा कि राजा कि छवि पाक साफ़ होनी ही चाहिए . यहाँ हम बेशर्मी कि सारी हदें पर करके  अत्याचारी शासन को प्रतिस्थापित करना चाहते हैं . होना ये चाहिए था कि शुरुआत में खुद ही इस्तीफा दिया जाता, नहीं तो अदालत कि टिप्पणी, मुख्यमंत्री कि सलाह तो माननी ही चाहिए थी. पर बदकिस्मती से लालबहादुर शास्त्री, ललितनारायण मिश्र और विश्वनाथ प्रतापसिंह सरीखे उदहारण हम याद नहीं करना चाहते . 
प्रदेश की बड़ी अदालत को रोज़ बोलना पड़ रहा है ! 
इससे ज्यादा बेशर्मी क्या होगी ??  
गुंडाराज कि सारी हदें हमने पर कर ली  है !!!         
  हम सब मिलकर कुछ सोचें !!!!  
धर्म की जय हो; अधर्म का नाश हो !!!!!! 
प्राणियों में सद्भाव हो; विश्व का कल्याण हो !!!!!!!
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बुधवार, अगस्त 10, 2011

BAAPARDA SACH बापर्दा सच

मंत्री    अमीन  खान  ने  सच  बयां  करने  की  जुर्रत  की ; तो  कुर्सी  छोड़कर  कीमत  अदा  की . राष्ट्रपति  जी  के  खिलाफ  गलत  बयानी  नहीं  होनी  चाहिए  , पर  किसी  पुराने  वाकया  का   ज़िक्र  करना  गलत  नहीं  है . ज्ञानी  जेल  सिंह  के  वक़्त  भी  कुछ  ऐसा  ही  हुआ  था .
हमारे  संविधान  का  अनुच्छेद  19(1)A बात  करने  की  आज़ादी  देता  है . राजनेताओं  को  सच  से  परहेज  रहता  है . पिछले    64 साल  से  राजनीती  नेहरु , इंदिरा , संजय , राजीव , मेनका , सोनिया , राहुल , वरुण , और  प्रियंका   के  इर्द  -गिर्द  घूम  रही  है . इसके  आगे  किसी  को  कुछ  नहीं  दीखता .

क्या  ये   झूठ  है  ?
क्या  ये  लोक  तंत्र  है  ?? 
ज़रा  सोचें  !!!
BE BOLD IN WHAT YOU STAND FOR !जय  हिंद
ASHOK KUMAR KHATRI; 74.2690 E; 29.6095N at globe APNY KHUNJA, Hanumangarh Junction, 335512