बुधवार, नवंबर 09, 2016

कठिन निर्णय

बड़े नोटों का विमुद्रीकरण साहसिक निर्णय है। क्रियान्वयन में कठिनाईयां तो आएंगी ही। शल्यक्रिया का दर्द तो सहना ही पड़ेगा। कठिन निर्णय लेना, जितना कठिन होता है, उस पर टिके रहना उतना ही दुष्कर होता है। 
मेरा मानना है कि इससे:- 

1- आम जनता की भलाई में, मंहगाई कम होगी । 

2- 1000 व 500 के नकली नोट जो छप चुके हैं या छपने वाले हैं, चल नहीँ सकेंगे । 

3- कालाबाजारी से इकट्ठा किया बेहिसाबी धन, चल नहीँ सकेगा । 

4- जमाखोरों का माल, ऊंचे दाम पर नहीँ बिकेगा । 

5- दो नम्बर वालों के पास धन न होने से, अनाप शनाप खरीद नहीँ कर सकेंगे। 

6- धन की मनमर्जी रूकने से, जरूरतमंद को सरलता होगी । 

7- सटोरिये दलाल property dealers, Chit fund,  या बाकी ऐसे बेईमान जो, भोली जनता के अरबों खरबों रुपये डकार गये, सब कंगाल हो गये । 

8- भ्रष्टाचारियों के कमरों में भरी नोटों की बोरियां, नाकाबिल हो गईं। 

9- आगामी चुनावों में, एक बार तो धन का प्रभाव नहीं रहेगा ।

घर की मरम्मत करने में, सामान तो बिखरेगा ही। कुछ टूट फूट होना भी स्वाभाविक है। 
विमुद्रीकरण के कायाकल्प की सामाजिक लागत तो हमें चुकानी ही पड़ेगी।
 8 नवंबर 2016 मङ्गलवार रात्रि को प्रधानमंत्री जी ने जो कड़वी औषध पिलाई है, वह अरुचिकर होने के बावज़ूद, देश के लिए मङ्गलकारी हो, यही प्रार्थना है:- 
तेरा मङ्गल, मेरा मङ्गल। 
सबका मङ्गल होय रे।। 


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