मंगलवार, अक्तूबर 18, 2011

BESHARMI बेशर्मी

अख़बारों  ने राजस्थान के एक वरिष्ठ मंत्री की बर्खास्तगी की खबर मुखपृष्ट पर छापी है. कुछ माह पहले इसी प्रदेश के एक मंत्री को इस्तीफे के लिए मजबूर किया गया था . एक को सच बोलने की सजा के तौर पर बाहर चलता किया गया था, और दूसरा अदालत की तल्खी से बचने के लिए बरख्वास्त किया गया . उस पर सीनाजोरी ये कि लामबंदी करके कहा जा रहा है कि, मुख्यमंत्री ने गलत किया है . कल्याणकारी राज्य कि अवधारणा में राजा का चरित्र संदेह से परे होना चाहिए. राजा रामचंद्र जी ने सीता को केवल इसलिए वन में भेजा कि राजा कि छवि पाक साफ़ होनी ही चाहिए . यहाँ हम बेशर्मी कि सारी हदें पर करके  अत्याचारी शासन को प्रतिस्थापित करना चाहते हैं . होना ये चाहिए था कि शुरुआत में खुद ही इस्तीफा दिया जाता, नहीं तो अदालत कि टिप्पणी, मुख्यमंत्री कि सलाह तो माननी ही चाहिए थी. पर बदकिस्मती से लालबहादुर शास्त्री, ललितनारायण मिश्र और विश्वनाथ प्रतापसिंह सरीखे उदहारण हम याद नहीं करना चाहते . 
प्रदेश की बड़ी अदालत को रोज़ बोलना पड़ रहा है ! 
इससे ज्यादा बेशर्मी क्या होगी ??  
गुंडाराज कि सारी हदें हमने पर कर ली  है !!!         
  हम सब मिलकर कुछ सोचें !!!!  
धर्म की जय हो; अधर्म का नाश हो !!!!!! 
प्राणियों में सद्भाव हो; विश्व का कल्याण हो !!!!!!!
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4 टिप्‍पणियां:

  1. PLEASE ALSO SEE
    "HIDE THE TRUTH"
    AT -
    www.apnykhunja.blogspot.com
    PUBLISHED ON 11.02.2011 AND
    'बापर्दा सच'
    AT -
    www.apnyvaani.blogspot.com
    PUBLISHED ON 10.08.2011

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  2. Dinesh Mehan
    to Ashok Kumar
    date Wed, Oct 19, 2011 at 11:41 AM
    subject Re: [APNY-VAANI] BESHARMI बेशर्मी

    Agar abhi bhi Janata kuch nahi sikh rahi hai to fir GALATI janata ki hai...


    Regards:-

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  3. आदरणीय अशोक जी

    केन्द्र और राज्य में सरकारें बेशर्मी और भ्रष्टाचार की हदें पार करती जा रही है ।
    आज पढ़ा होगा गहलोत सरकार का एक मंत्री बाबूलाल नागर सपरिवार दो दो जगह वोटर लिस्ट में नाम लिखाए हुए पाया गया है…
    …और मुख्यमंत्री मीडिया पर पाबंदी की बात करते हैं

    और दीजिए वोट इन्हें :(

    आपके आलेख के लिए आभार !

    त्यौंहारों के इस सीजन सहित
    आपको सपरिवार
    दीपावली की बधाइयां !
    शुभकामनाएं !
    मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है । धर्म के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । धर्म पालन में धैर्य, विवेक, क्षमा जैसे गुण आवश्यक है ।
    शिव, विष्णु, जगदम्बा के अवतार एवं स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी धर्म के लिए कर्म करती है ।
    धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
    अधर्म- असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म है । अधर्म के लिए कर्म करना भी अधर्म है ।
    कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म (किसी में सत्य प्रबल एवं किसी में न्याय प्रबल) -
    राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मंत्रीधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
    जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक एवं परमात्मा शिव की इच्छा तक रहेगा ।
    धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर के किसी रूप की उपासना, दान, तप, भक्ति, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
    धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
    राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है । by- kpopsbjri

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