सोमवार, नवंबर 21, 2011

SAMANATA समानता

तिलक तराजू और तलवार
इनको मारो जूते चार 
यह दोहा आप किसी भी मञ्च से बेधड़क बोल सकते हैं. आपको कोई डर भय महसूस करने की ज़रूरत ही नहीं है। यह काबिल सजा के दायरे में नहीं आता। ज़रूरत है, सजा के दायरे से बचने की। देश का  संविधान समानता का मौलिक अधिकार देता है।  यह अलग बात है कि वोटों कि चाह में हम संविधान का मूल स्वरूप बिगाड़ दें, या उसके रक्षक उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के आदेशों की मनमानी व्याख्या करते हैं। 
 ऐसी हरकतों से उनका नुकसान ज़्यादा होता है, जिनका हिमायती होने का हम ढोंग करते हैं । 
  हम समानता की बजाय खाई को चौड़ा और गहरा करते जा रहे है । 
नुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का 90% दुरूपयोग होता है। दूसरी तरफ़ वास्तविक दलित को आज भी हम बराबरी नहीं देना चाहते हैं। अन्तर सिर्फ इतना आया कि पहले सामन्तशाही शोषण था। अब उनके अपने ही वर्ग के स्वयंभू ठेकेदार सब कुछ हड़प जाते हैं। चाहे आरक्षण हो, अनुदान हो, नौकरियां हों संवैधानिक पद, या सामाजिक सुरक्षा सब हड़प। 
संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और आर्थिक समानता पर बल दिया गया है। भूमि सुधार कानून की आड़ में अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के लोगों को कम कीमत मिलती है। 
हम उनकी क्षमता और विकास को अवरुद्ध कर रहे हैं, क्यों ?
 ज़रा सोचें !!
जय हिंद جے ھند  ਜੈਹਿੰਦ
My Location at Globe 74.2690 E; 29.6095N
Ashok, Tehsildar Hanumamgarh 9414094991

1 टिप्पणी: