आज सुबह जोधपुर नई सड़क से HIGH COURT पैदल जाते हुए ; उम्मेद उद्यान के पास HOTELS' रसोई का WASTAGE पड़ा था . उस के पास बैठा एक आदमी उस में से उठा उठा कर रोटी सब्जी के टुकड़े खा रहा था . मेरा जी मितलाने लगा , उल्टी आने को हुई . लगभग 100 मीटर जाते जाते मेरी आँखों में आंसु आ गए . मैं जी कड़ा कर के वापस लौटा , उसे 10 का नोट दिया ; उसने निर्विकार भाव से , ले लिया . मैं HIGH COURT चला गया ; जी बहुत ख़राब था ; और बार बार प्रभु से प्रार्थना करता रहा - इस वक़्त मेरे खाते में कोई पुण्य हो तो उसे दे दो ¤
सोच रहा हूँ ; शायद भूख भी , ज़िन्दगी का ही हिस्सा है .ज़िन्दगी कैसी है पहेली ?
कभी ये हंसाये !
कभी ये रुलाये !!
LET WE THINK;
IS IT A HAPPY DIPAWALI ?
जय हिंद
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